बातों-बातों में किसी ख़्वाब का नक्शा बन जाए
दो क़दम साथ चलो क्या पता रस्ता बन जाए
मुझ पे लानत जो तुम्हें सोच के पाऊँ न सुक़ून
वस्ल भी क्या कि जो दुनिया में तमाशा बन जाए
इश्क़ वो है कि मै भर आँख जिसे भी देखूँ
हर वो सूरत मेरी ख़ातिर तेरा चेहरा बन जाए
ये जो शातिर बना फिरता है मेरा दिल कमबख़्त
यार सीने से लगा ले तो ये बच्चा बन जाए
आज हासिल है मुहब्बत तो चलो ख़ुश हो लें
जाने कब रोने-रूलाने का ये मुद्दा बन जाए
Bahut khoooooooob mohtram